कभी कभी
बब्बन
भूरो भैंस को
पानी पिलाया
और चारा खिलाया
करता है बड़े प्यार से।
बब्बन
लगातार
दो साल से
परीक्षा में
अनुत्तीर्ण हो रहा है ,
फिर भी
वह करता है
'भूरो देवी' की देखभाल
और सेवा बड़े प्यार से।
बब्बन
कभी कभी
उतारता है अपनी खीझ
पेड़ पर
बिना किसी वज़ह
पत्थर मारकर ,
फिर भी मन नहीं भरा
तो खीझा रीझा वह बहस करता है
अपने छोटे भाई से,
अंततः उससे डांट डपट कर,
मन ही मन
अपने अड़ियल मास्टर की तरफ़
मुक्का तानने का अभिनय करता हुआ
उठ खड़ा होता है
अचानक।
परन्तु
नहीं कहता कुछ भी
अपनी प्यारी
मोटी मुटृली भूरों भैंस को।
वह तो बस
उसे जुगाली करते हुए
चुपचाप देखता रहता है ,
मन ही मन
सोचता रहता है ,
दुनिया भर की बातें ।
और कभी कभी स्कूल में पढ़ी,सुनी सुनाई
मुहावरे और कहावतें ।
बेचारी भूरों देवी
खूंटे से बंधी , बब्बन के पास खड़ी
जुगाली के मज़े लेती रहती है,
थकती है तो बैठ जाती है,
भूख लगे तो चारे में मुंह मारती है ,
थोड़ी थोड़ी देर के बाद
अपनी पूंछ हिला हिला कर
मक्खी मच्छर भगाती रहती है
और गोबर करती व मूतियाती रहती है ,
भूरों भैंस बब्बन के लिए
भरपूर मात्रा में देती है दूध।
बब्बन की सच्ची दोस्त है भूरों भैंस।
सावन में
जीवन के
मनभावन दौर में
झमाझम बारिश के दौरान
भूरों होती है परम आनन्दित
क्यों कि बारिश में जी भर कर भीगने का
अपना ही है मजा।
यही नहीं भूरो बब्बन के संग
जोहड़ स्नान का
अक्सर
लेती रहती है आनंद।
कभी-कभी
दोनों दोस्त बारिश के पानी में भीगकर
अपने निर्थकता भरे जीवन को
जीवनोत्सव सरीखा बना कर
होते हैं अत्यंत आनंदित, हर्षित, प्रफुल्लित।
जब बड़ी देर तक
बब्बन भूरों रानी के संग
नहाने की मनमानी करता है ,
तब कभी कभी
दादू लगाते हैं बब्बन को डांट डपट और फटकार,
" अरे मूर्ख, ज्यादा भीगेगा
तो हो जाएगा बीमार ,
चढ़ जाएगा ज्वर --
तो भूरों का रखेगा
कौन ख्याल ? "
कभी कभी
बब्बन भूरों की पीठ पर
होकर सवार
गांव की सैर पर
निकल जाता है,
वह भूरों को चरागाह की
नरम मुलायम घास खिलाता है।
और कभी कभी
बब्बन भूरों की पीठ से
कौओं को उड़ाता है ,
उसे अपना अधिकार
लुटता नजर आता है।
सावन में
कभी कभार
जब रिमझिम रिमझिम बारिश के दौरान
तेज़ हो जाती है बौछारें
और घनघोर घटा बादल बरसने के दौर में
कोई बिगड़ैल बादल
लगता है दहाड़ने तो धरा पर पहले पहल
फैलती है दूधिया सफेद रोशनी !
इधर उधर जाती है बिखर !!
फिर सुन पड़ती तेज गड़गड़ाहट!!!
बब्बन कह उठता है
अचानक ,
' अरे ! वाह भई वाह!!
दीवाली का मजा आ गया!'
ऐसे समय में
सावन का बादल
अचानक
अप्रत्याशित रूप से
प्रतिक्रिया करता सा
एक बार फिर से गर्ज उठता है,
जंगल के भूखे शेर सरीखा होकर,
अनायास
बब्बन मियां
भूरो भैंस को संबोधित करते हुए
कह उठता है,
' वाह ! मजा आ गया !!
बादल नगाड़ा बजा गया !
आ , भूरो, झूम लें !
थोड़ा थोड़ा नाच लें !! '
भूरो रहती है चुप ,
उसे तो झमाझम बारिश के बीच
खड़ी रहकर मिल रहा है
परम सुख व अतीव आनंद !!
बब्बन
यदि बादलों की
गर्जन और गड़गड़ाहट में
ढूंढ सकता है
सावन में दीवाली का सुख
तो उसे क्या !
वह तो भैंस है ,
दुधारू पशु मात्र।
एक निश्चित अंतराल पर
जीवन की बोली बोलती है ,
तो उसकी क्षुधा मिटाने का
किया जाता है प्रबंध !
ताकि वह दूध देती रहे ।
परिवार का भरण-पोषण करती रहे।
वह दूध देने से हटी नहीं,
कि खूंटे से इतर
जाने के लिए
वह बिकी कसाई के पास
जाने के लिए।
या फिर
उसे लावारिस कर
छोड़ देगा
इधर-उधर फिरने के लिए।
वह भूरो भैंस है
न कि बब्बन की बहन!
दूध देने में असफल रही
तो कर दी जाएगी घर से बाहर !
बब्बन भइया
अनुत्तीर्ण होता भी रहे
तो उसे मिल ही जाएगी
कोई भूरो सी भैंस !
बच्चे जनने के लिए !
वंश वृद्धि करने के लिए !!
०४/०८/२००८.