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Dec 2024
लोग सोचते हैं कि
आपको सब कुछ पता है ,
आसपास का सब कुछ --
नहीं है आपकी आंखों से
ओझल कुछ भी कहीं।

पर आप जानते हैं --
स्वयं को अच्छी तरह से ,
फलत: आप चुप रहते हैं ,
अपना सिर झुका कर
हर क्षण,हर पल, चुपचाप
चिंतन मनन करते रहते हैं।
अपना सिर झुकाए हुए
सोचते हैं ,निज से कहते हैं कि...,
" कैसे कहूं अपना सच !
किस विधि रखूं अपने
जीवन में प्राप्त निष्कर्ष
जनता जनार्दन के सम्मुख।
सतत् परिश्रम बना हुआ है
उत्कृष्टता का केन्द्र
और जीवन का आधार!"
" इस के अतिरिक्त
और नहीं कुछ मुझे विदित ,
दुनिया न खुद के बारे में ।
बहुत सा सच है अंधियारे में।"

आप कहते कुछ नहीं,
आजकल सुनते भर हैं।
आप कहें भी किस से ?
सब समय की चक्की तले
मतवातर पिस रहें।

कभी कभी आप
सुनते भर नहीं ,
अविराम सोचते समझते हैं ,
भीतरी अंधेरे को
उलीचते भर हैं ।
ताकि जीवन के सच का
उजास जीवन में मिलता रहे।
इससे जीवन - पथ प्रकाशित होता रहे।
लोग सोचते हैं कि आपको सब पता है ,
आप सोचते हैं कि लोगों को सब पता है ,
सच्चाई यह है -- आप और भीड़ , दोनों लापता हैं,
और आप सब कुछ कहे बिना
अपने अपने ‌ढंग से ढूंढते अपने घर का पता हैं ।

०४/०८/२००८.
Written by
Joginder Singh
36
 
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