भले ही कोई उतारना चाहे दूध का कर्ज़ , अदा कर अपने फर्ज़। यह कभी उतर नहीं सकता , कोई इतिहास की धारा को कतई मोड़ नहीं सकता। भले ही वह धर्म-कर्म और शक्ति से सम्पन्न श्री राम चन्द्र जी प्रभृति मर्यादा पुरुषोत्तम ही क्यों न हों ? उनके भीतर योगेश्वर श्रीकृष्ण सी 'चाणक्य बुद्धि 'ही क्यों न रही हो !
मां संतान को दुग्धपान कराकर उसमें अच्छे संस्कार और चेतना जगाकर देती है अनमोल जीवन, और जीवन में संघर्ष हेतु ऊर्जा। ऐसी ममता की जीवंत मूर्ति के ऋण से पुत्र सर्वस्व न्योछावर कर के भी नहीं हो सकता उऋण। माता चाहे जन्मदात्री हो,या फिर धाय मां अथवा गऊ माता, दूध प्रदान करने वाली बकरी,ऊंटनी या कोई भी माताश्री।
दूध का कर्ज़ उतारना असंभव है। इसे मातृभूमि और मातृ सेवा सुश्रुषा से सदैव स्मरणीय बनाया जाना चाहिए। मां का अंश सदैव जीवात्मा के भीतर है विद्यमान रहता। फिर कौन सा ऐसा जीव है, जो इससे उऋण होने की बालहठ करेगा ? यदि कोई ऐसा करने की कुचेष्टा करें भी तो माता श्री का हृदय सदैव दुःख में डूबा रहता! कोई शूल मतवातर चुभने लगता, मां की महिमा से समस्त जीवन धारा और जीव जगत अनुपम उजास ग्रहण है करता। ममत्व भरी मां ही है सृष्टि की दृष्टि और कर्ताधर्ता !! ०३/०८/२००८.