टैलीविजन पर समसामयिक जीवन और समाज से संबंधित चर्चा परिचर्चा देख व सुन कर आज अचानक आ गया एक विस्मृत देशभक्त वीर सावरकर जी का ध्यान।
जिन्हें आज तक देश की आज़ाद फिजा के बावजूद विवादित बनाए रखा गया। उन्हें क्यों नहीं भारत रत्न से सम्मानित किया जा सका ? मन ने उन को नमन किया। मन के भीतर एक विचार आया कि आज जरूरत है उनकी अस्मिता को दूर सुदूर समन्दर से घिरे आज़ादी की वीर गाथा कहते अंडेमान निकोबार द्वीपसमूह में स्थित सैल्यूलर जेल की क़ैद से आज़ाद करवाने की। वे किसी हद तक आज़ाद भारत में अभी भी एक निर्वासित जीवन जीने को हैं अभिशप्त। अब उन्हें काले पानी के बंधनों से मुक्त करवाया जाना चाहिए। उनके मन-मस्तिष्क में चले अंतर्द्वंद्व और संघर्षशील दिनचर्या को सत्ता के प्रतिष्ठान से जुड़े नेतृत्वकर्ताओं के मन मस्तिष्क तक पहुंचाया जाना चाहिए ताकि अराजकता के दौर में वे राष्ट्र सर्वोपरि के आधार पर अपने निर्णय ले सकें, कभी तो देश हित को दलगत निष्ठाओं से अलग रख सकें। वीर सावरकर संसद के गलियारों में एक स्वच्छंद और स्वच्छ चर्चा परिचर्चा के रूप में जनप्रतिनिधियों के रूबरू हो सकें। कभी सोये हुए लोगों को जागरूक कर सकें।
सच तो यह है कि भारत भूमि के हितों की रक्षार्थ जिन देशी विदेशी विभूतियों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया हो , उन सभी का हृदय से मान सम्मान किया जाना चाहिए।
हरेक जीवात्मा जिसने देश दुनिया को जगाने के लिए अपने जीवनोत्सर्ग किया, स्वयं को समर्पित कर दिया, उन्हें सदैव याद रखना चाहिए। ऐसी दिव्यात्माओं की प्रेरणा से समस्त देशवासियों को अपना जीवन देश दुनिया के हितार्थ समर्पित करना चाहिए। समस्त देश की शासन व्यवस्था ' वसुधैव कुटुम्बकम् 'के बीज मंत्र से सतत् प्रकाशित होती रहनी चाहिए। १८/१२/२०२४.