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जीवन में  
सुख ढूंढते ढूंढते
जीव
उठाता है
दुःख ही दुःख ।

आखिरकार
जीव
छोटी-छोटी उपलब्धियों में
ढूंढ लेता है प्रसन्नता दायक सुख।

यह सुख देता है
कुछ समय तक
समृद्धि और सम्पन्नता का अहसास
फिर अचानक
निन्यानवे के फेर में पड़ कर
उठाने लगता है
कष्टप्रद ‌जीवन में
सुख की आस में
दुःख , दर्द , तकलीफ़
आखिरकार थक-हारकर
जब देने लगती
जीवन के द्वार पर
मृत्यु धीरे-धीरे दस्तक ,
जीवात्मा
झुका देती अपने समस्त
सुख और वैभव ‌भूल भाल कर
मृत्यु के सम्मुख
अपना मस्तक।
जब जीव
आखिर में
जीवन की उठकर पटक ,
भाग दौड़ को भूलकर
अपने मूल की ओर
लौटना है चाहता
मन में तीव्र चाहत उत्पन्न कर,
तब अचानक
अप्रत्याशित
जीवन में जीव के सम्मुख
होता है मृत्यु का आगमन।
ऐसे में
जीवात्मा
रह जाती चुप ,
वह ढूंढ लेती मृत्यु बोध में चरम सुख ,
समाप्त हो ही जाते तमाम दुःख दर्द।

मृत्यु का आगमन
जीवन को सार्थक करने वाला
एक क्षण होता है,
निर्थकता के बोध से लबालब भरा
जीवन शीघ्रातिशीघ्र
समाप्त होता है।
लगता है मानो कोई दीपक
अपना भरपूर प्रकाश फैला कर
गया हो अपने उद्गम की ओर लौट ,
और गया हो बुझ !
जीवन में और बहुत से
दीपकों को ज्योतिर्गमय कर ।

इस बाबत सोचता हूं तो रह जाता चुप।
आदमी सुख की नींद पाकर
पता नहीं कब सो जाता है ?
गूढ़ी नींद सोया ‌ही रहता है ,
जब तक मृत्यु आकर
जीवात्मा को यमलोक की सैर
कराने के लिए
नहीं जगाती।
मृत्यु का आगमन
जीवात्मा को निद्रा सुख से जगाना भर है ,
जीवन धारा अजर अमर है,
जन्म और मरण अलौकिक क्षण भर हैं ।
०३/०८/२००८.
Written by
Joginder Singh
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