जब से सच ने अपना बयान दिया है , तब से दुनिया भर का रंग ढंग बदल गया है , और ज्ञान का दायरा सतत् बढ़ा है।
अभी अभी मुझे हुआ है अहसास कि यह सुविधा भोगी दुनिया निपट अकेली रह गई है, उसकी अकड़ समय के साथ बह गई है ।
मुझे हो चुका है बोध कि दुनिया बाहर से कुछ ओर , भीतर से कुछ ओर । बाहर से जो देता है दिखाई , वह कभी कभी होता है निरा झूठ ! भीतर से जो देता है सुनाई वह ही होता है सही और सौ फीसदी सच !!
पर आजकल आदमी चमक दमक के पीछे भाग रहा है , आत्मा को मारकर धन और वैभव के आगे नाच रहा है।
जब से एक दिन चुपके से सच ने अपनी जड़ों से जुड़कर जीवन में आगे बढ़ यथार्थ को अनुभूत करने की बात कही है, तब से मैं खुद को एक बंधन से बंधा पा रहा हूं , मैंने अपनी भूलें और गलतियां सही की हैं ।
आजकल मैं कशमकश में हूं , कुछ-कुछ असमंजस में पड़ा हुआ हूं ।
बात यदि सच की मानूं , तो आगे दिख पड़ता है एक अंधेरे से भरा कुंआ, जिसमें कूद पड़ने का ख़्याल तक जान देता है सुखा ! और यदि झूठ के भीतर रहकर सुख समृद्धि संपन्नता का वरण करूं तो दिख पड़ती खाई , जिसमें कूदने से लगता है भय निस्संदेह इसका ख्याल आने तक से होने लगती है घबराहट पास आने लगती है मौत की परछाई !! और जीवन पीछे छूटने की आहट भी देने लगती है सुनाई !!
मन में कुछ साहस जुटा कर कभी कभार सोचता हूं -- बात नहीं बनेगी क्रंदन से , जान बचेगी केवल आत्म मंथन से सो अब सर्वप्रथम स्वयं का सच से नाता जोड़ना होगा। इसके साथ ही झूठ से निज अस्तित्व को अलगाना होगा। ताकि जीवन में प्रकाश और परछाई का खेल निरंतर चलता रहे। आत्म बोध भी समय को अपने भीतर समाहित करना हुआ चिरंतन चिंतन के संग जीवन पथ पर अग्रसर होता रहे। ३०/०६/२००७.