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Dec 2024
आज तुम्हारे मन की देहरी पर
अपना आशा दीप जलाऊंगीं
बाहर अनंत अधेरा है
उस रोशनी की ओर
कोई तो कदम बढाएगा
जो तुम्हारे अन्तर्मन पर दस्तक देगा
मुझे बंद अन्तर्मन की झीनी दरारों से
एक रोशनी नजर आती है।
कभी कोई मधुर गीत गाता है
तो कभी दर्द के स्वर में गुनगुनाता है
कभी कभी महीनों तक सन्नाटा पसरा रहता है।
आज तुम्हारे मन की देहरी पर दीप जलाऊंगीं
वहीं उस पसरे सन्नाटे में सिमट बैठ जाऊंगी
एक दिन तो तुम योगी बन साधना पूरी कर आओगे
इस संसार को अपने गीत सुना अमर हो जाओगे
उन पदचिह्नों की माटी से अपने मस्तक पर तिलक सजाऊँगी
Written by
Vanita vats
45
   Aniruddha
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