पूर्णरूपेण अतिशयोक्ति पूर्ण जीवन का क्लाइमैक्स चल रहा है यहाँ ! ढूंढ़ भाई जीवन में वक्रोक्ति , न कि जीवन में अतिशयोक्ति पूर्ण अभिव्यक्ति यहाँ ।
बड़े पर्दे वाली फिल्मी इल्मी दुनिया में अतिशयोक्ति पूर्ण जीवन दिखाया जा रहा है। जनसाधारण को बहकाया जा रहा है यहाँ।
और कभी कभी जीवन कवि से कहता होता है प्रतीत..., तुम अतीत में डूबे रहते हो, कभी वर्तमान की भी सुध बुध ले लिया करो। अपनी वक्रोक्तियों से न डरो। ये तल्ख़ सच्चाइयों को बयान करतीं हैं।
अभी तो तुम्हें महाकवि कबीरदास जी की उलटबांसियों को आत्मसात करना है , फिर इन्हें सनातन के पीछे पड़े षड्यंत्रकारियों को समझाना है। तब कहीं जाकर उन्हें अहसास होगा कि उनके जीवन में आने वाली परेशानियों के समाधान क्या क्या हैं? जो उन्हें मतवातर भयभीत कर रहीं हैं ! बिना डकार लिए उनके अस्तित्व को हज़्म और ज़ज्ब करतीं जा रहीं हैं ! उनका जीवन जीना असहज करतीं जा रहीं हैं!!
तुम उन्हें सब कुछ नहीं बताओगे। उन्हें संकेत सूत्र देते हुए जगाना है। तुम उन्हें क्या की बाबत ही बताओगे । क्यों भूल कर भी नहीं। वे इतने प्रबुद्ध और चतुर हैं, वे ...क्यों ...की बाबत खुद ही जान लेंगे! स्वयं ही क्यों के पीछे छुपी जिज्ञासा को जान लेंगे ! खोजते खोजते अपने ज़ख्मों पर मरहम लगा ही लेंगे!!
यह अतिशयोक्तिपूर्ण जीवन किसी मिथ्या व भ्रामक अनुभव से कम नहीं ! यहाँ कोई किसी से कम नहीं!! जैसे ही मौका मिलता है, छिपकलियाँ मच्छरों कीड़ों को हड़प कर जाती हैं।
यह अतिश्योक्ति पूर्ण जीवन अब हमारे संबल है। जैसे ही अपना मूल भूले नहीं कि देश दुनिया में संभल जैसा घटनाक्रम घट जाता है। आदमी हकीक़त जानकर भौंचक्का और हक्का-बक्का रह जाता है। बस! अक्लमंद की बुद्धि का कपाट तक बंद हो जाता है। देश और समाज हांफने, पछताने लगता है। देश दुनिया के ताने सुनने को हो जाता है विवश। कहीं पीछे छूट जाती है जीवन में कशिश और दबिश।