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Dec 2024
सुध बुध भूली ,
राम की हो ली ,
मन के भीतर
जब से सुनी ,
झंकार रे !
जीवन में बढ़ गया
अगाध विश्वास रे !
यह जीवन
अपने आप में
अद्भुत प्रभु का
श्रृंगार रे!

भोले इसे संवार रे!!
भक्त में श्रद्धा भरी
अपार  रे!
तुम्हें जाना है
भव सागर के पार
प्रभु आसरे रे!
बन जा अब परम का
दास रे!
काहे को होय
अधीर रे!
निज को अब बस
सुधार रे!
यह जीवन
एक कर्म स्थली है
बाकी सब मायाधारी का
चमत्कार रे!
कुछ कुछ एक व्यापार रे!!
Written by
Joginder Singh
43
 
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