नाभि दर्शना साड़ी पहने कोई स्त्री देखकर , पुरुष का सभ्य होने का पाखंड कभी कभी खंडित हो जाता है । उसकी लोलुपता उसकी चेतना पर पड़ जाती है भारी। यह एक वहम भर है या हवस भरी सामाजिक बीमारी ? इसका फैसला उसे खुद करना है। उसे कभी तो भटकन के बाद शुचिता को वरना है। १६/१२/२०२४.