Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
2d
आज  भी ,
कल  भी  ,  और  आगे भी
समाज  में  आग  लगी  रहेगी  न  !
हमारे  यहां  के  समय   में
समाजवाद  का  हो   चुका  है   आगमन  !
दमन  ,  वमन  ,  रमन  , चमन , गबन  और  गमन
आदि  सब  अपने  अपने  काम  धंधों  में  मग्न !
यदि   कोई  निठल्ला बैठा  है  तो  वह  है...
परिवेश  का  कोलाज ,
जो  समाज  और  समाजवादी  रंग  रूप
पर  रह  रह  कर
कहना  चाहता  है   अपवाद   स्वरूप  
कुछ मन के उद्गार!
आप के सम्मुख
रखना चाहता है मन की बात।
सुनिए   इस   बाबत  
आसपास   से   उठनेवाली  कुछ  ध्वनियां  !!

' निजता ' ,
' इज़्ज़त '  गईं   अब   तेल   लेने  !
ये  तो  बड़े  लोगों  की
बांदियां  हैं
और
छोटे-छोटे   लोगों   के   लिए
बर्बादियां  हैं   !!

अब   कहीं   भी   और   कभी   भी
निजता  बचनी   नहीं   चाहिए  ।
कहीं  कोई  इज़्ज़त   करनी  और   इज़्ज़त ‌  करवाने  की
परिपाटी   व  परम्परा   नहीं   होनी   चाहिए  ।


हर   घर   में   रोटी   पानी   चाहिए  ।
ज़िंदगी   में  अमन  चैन   बची  रहनी   चाहिए  ।
जीवन   अपनी   रफ्तार   और   शर्तों  से  
आगे   बढ़ना   चाहिए  ।
जी  भरकर  मनमर्ज़ियां  और  मनमानियां  की  
जानी   चाहिएं  ।
ज़िंदगी   खुलकर  जीनी   चाहिए  ।

अब   समाजवाद   आ   ही  जाएगा  ।
हर  कोई  समाजवादी  बन  ही  जाएगा  ।
जीवन   से  अज्ञानता  का  अंधेरा   छंट  ही  जाएगा  ।

कहीं  गहरे  से  एक  आगाह  करती
अंतर्ध्वनि  सुन  पड़ती  है ...,
'  वह  तो  आया  हुआ  है  जी  ! '
अब   उसे   मैं    क्या   कहूं    ?
रोऊं  या  हंसते हंसते रो पडूं ?

१६/१२/२०२४.
Written by
Joginder Singh
29
 
Please log in to view and add comments on poems