आतंक आग सा बनकर बाहर ही नहीं भीतर भी बसता है , बशर्ते आप उसे समय रहते सकें पकड़ ताकि शांति के तमाम रास्ते सदैव खुले रहें ।
आतंक हमेशा एक अप्रत्याशित घटनाक्रम बनकर जन गण में भय और उत्तेजना भरकर दिखाता रहा है अपनी मौजूदगी का असर ।
पर जीवन का एक सच यह भी है कि समय पर लिए गए निर्णय , किया गया मानवीय जिजीविषा की खातिर संघर्ष , शासन-प्रशासन और जनसाधारण का विवेक आतंकी गतिविधियों को कर देते हैं बेअसर , बल्कि ये आतंकित करने वाले दुस्साहसिक दुष्कृत्यों को निरुत्साहित करने में रहते हैं सफल। ये न केवल जीवन धारा में अवरोध उत्पन्न करने से रोकते हैं, अपितु विकास के पहियों को सार्थक दिशा में मोड़ते हैं। अंततः कर्मठता के बल पर आतंक के बदरंगों को और ज्यादा फैलने से रोकते हैं।
दोस्त, अब आतंक से मुक्ति की बाबत सोच , इससे तो कतई न डरा कर बस समय समय पर अपने भीतर व्याप्त उपद्रवी की खबर जरूर नियमित अंतराल पर ले लिया कर , ताकि जीवन के इर्द-गिर्द विष वृक्ष जमा न सकें कभी भी अपनी जड़ों को ।
और किसी आंधी तूफ़ान के बगैर मानसजात को सुरक्षा का अहसास कराने वाला जीवन का वटवृक्ष हम सब का संबल बना रहे , यह टिका रहे , कभी न उखड़े ! न ही कभी कोई दुनिया भर का गांव ,शहर , कस्बा,देश , विदेश उजड़े। न ही किसी को निर्वासित होकर अपना घर बार छोड़ने को बाधित होना पड़े । १६/०६/२००७.