जब-जब युग युगल गीत गुनगुनाना चाहता है लेकर अपने संग जनता जनार्दन की उमंग तरंग , तब तब मन का बावरा पंछी उन्मुक्त गगन का ओर छोर पाना चाहता है ! पर... वह उड़ नहीं पाता है और अपने को भीतर तक भग्न पाता है।
और यह मसखरा उन्हें उनकी नियति व बेबसी की प्रतीति कराने के निमित्त प्रतिक्रिया वश अकेले ही शुगलगीत गाता है, मतवातर अपने में डूबना चाहता है !!
पर कोई उसे अपने में डूबने तो दे! अपने अंतर्करण को ढूंढने तो दे ! कोई उसे नख से शिख तक प्रदूषित न करे !!