तन समर्पण, मन समर्पण, धन समर्पण, सर्वस्व समर्पण, वह भी अहंकार को पालित पोषित करने के निमित्त फिर कैसे रहेगा शांत चित्त ? आप करेंगे क्या कभी अंधाधुंध अंध श्रद्धा को समर्पित होने का समर्थन ? समर्पण होना चाहिए , वह भी जीवन में गुणवत्ता बढ़ाने के निमित्त। जिससे सधे सभी के पुरुषार्थी बनने से जुड़े सर्वस्व समर्पण के हित।
अहम् को समर्पण अहंकार बढ़ाता है , क्यों नहीं मानस अपने को पूर्ण रूपेण जीवन की गरिमा के लिए समर्पित कर पाता है ? वह अपने को बिखराव की राह पर क्यों ले जाना चाहता है ? वह अपने स्व पर नियंत्रण क्यों नहीं रख पाता है ? आजकल ऐसे यक्ष प्रश्नों से आज का आदमी क्यों जूझना नहीं चाहता है ? वह स्वार्थ से ऊपर उठकर क्यों नहीं आत्मविकास के पथ को अपनाता है ? १४/१२/२०२४.