तुम आनन फानन में लोक के हितार्थ फैसला सुनना चाहते हो । भला यह मुमकिन है क्या ? याद रखो यह तथ्य बेशक जीवन में व्याप्त है सत्य , परन्तु कथ्य की निर्मिति में लग सकता है कुछ अधिक समय । फिर यह तो जग ज़ाहिर है कि चिंतन मनन में समय लगना बिल्कुल स्वाभाविक है।
तुम संवेदनशील मुद्दों को फ़िलहाल दबा ही रहने दो। जनता जनार्दन को कुछ और संघर्षशील बन जाने दो।
जब उपयुक्त समय आएगा , दबे- कुचले, वंचितों - शोषितों, पीड़ितों के हक़ में फैसला भी आ ही जाएगा। जो न्याय व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया में जनता जनार्दन के विश्वास को , उत्तरोत्तर दृढ़ करता जाएगा।
बंधुवर ! सही समय आने पर , अनुकुलता का अहसास हो जाने पर , जन जन के सपनों को , पर लग जाने पर , सभी अपनी -अपनी उड़ान भरेंगे ! सभी अपने-अपने सपने साकार करेंगे !! सभी अपने भीतर अदम्य साहस व ऊर्जा भरेंगे !!!