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जीवन धारा भवन,
संसार नगर।
अभी अभी...!

दोस्त ,
इतना भी
सच न कहो ,
आज
तुम से मिलना
तुम से बिछुड़ना हो जाए।
मन के भीतर
कहीं गहरे में कटुता भर जाए।
हम पहले की तरह
खुल कर , निर्द्वंद्व रहकर
कभी न मिल पाएं।

तुम्हारा मित्र ,
विचित्र कुमार ।

१०/०३/२०१७.
Written by
Joginder Singh
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   Vanita vats
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