कभी-कभी जीवन का वृक्ष अज्ञानी से ज्ञानी बना रहा लगता है और वृक्ष पर पल रहा जीवन अंकुरित, पुष्पित, पल्लवित होकर सब को हर्षित कर रहा लगता है।
मेरे घर के सामने एक पीपल का वृक्ष पूरी शान ओ 'शौकत से एक स्वाभिमानी बुजुर्ग सरीखा शांत सा होकर आत्माभिमान से तना हुआ जीवन के उद्गम को कर रहा है मतवातर इंगित और रोमांच से भरपूर ! ऐसा होता है प्रतीत कि अब जीवन अपने भीतर जोश भरने को है उद्यत। जीवन समय के सूक्ष्म अहसासों से सुंदरतम बन पड़ा है। ऐसे पलकों को झपकाने के क्षणों में कोयल रही है कूक पल-पल कुहू कुहू कुहू कुहू करती हुई। मानो यह सब से कह रही हो जीवन का अनुभूत सत्य, इसे जीवन कथ्य बनाने का कर रहा हो आग्रह कि अब रहो न और अधिक मूक । कहीं हो न जाए जीवन में कहीं कोई चूक। कहीं जीवन रुका हुआ सा न बन जाए , इसमें से सड़ांध मारती कोई व्यवस्था नज़र आ जाए ।
वृक्ष का जीवन कहता है सब से जो कुछ भी देखो अपने इर्द-गिर्द । उसे भीतर भर लो उसका सूक्ष्म अवलोकन करते हुए , अपनी झोली प्रसाद समझ भर लो।
इधर पीपल के पेड़ की एक टहनी पर बैठी कोकिला कुहू कुहू कुहू कुहू कर चहक उठी है , उधर हवा भी पीपल के पत्तों से टकराकर कभी कभार ध्वनि तरंगें कर रही है उत्पन्न । यह हवा छन छन कर मन को महका रही है। जीवन को सुगंधित और सुखमय होने का अहसास करा रही है।
कोकिला का कुहूकना, पत्तों के साथ हवा के झोंकों का टकराना , मौसम में बदलाव की दे रहा है सूचना । यह सब आसपास, भीतर बाहर जीवन के एक सम्मोहक स्वरूप का अहसास करा रहे हैं , ऐसे ही कुछ पल जीवन को जड़ता से दूर ले जाकर गतिशीलता दे पा रहे हैं। जीवन के भव्य और गरिमामय होने की प्रतीति करा रहे हैं।
वृक्ष का जीवन किसी तपस्वी के जीवन से कम नहीं है , यह अपने परिवेश को जीवंतता से देता है भर , यह आदमी को अपनी जड़ों से जुड़े रहने की देता रहा है प्रेरणा । १२/१२/२०२४.