आदमी यदि जानबूझकर अपनी ज़िद पर अड़ा रहे , दूसरे को जिंदगी के कटघरे में खड़ा करे तो व्यक्ति क्या करे ? क्यों न वह निंदा को एक हथियार बनाकर शक्ति प्रदर्शन करे ? सोचिए ज़रा खुले मन से , उसको शर्मिन्दा करने के लिए थोड़ी सी निंदा की है , कोई कमीनगी थोड़ा की है , जैसा को तैसा वाली प्रतिक्रिया भर की है ।