तुम उसे पसंद नहीं करते ? वह घमंडी है। तुम भी तो एटीट्यूड वाले हो , फिर वह भी अपने भीतर कुछ आत्मसम्मान रखे तो वह हो गया घमंडी ? याद रखो जीवन की पगडंडी कभी सीधी नहीं होती। वह ऊपर नीचे, दाएं बाएं, इधर उधर, कभी सीधी,कभी टेढ़ी, चलती है और अचानक उसके आगे कोई पहाड़ सरीखी दीवार रुकावट बन खड़ी हो जाती है तो वह क्या समाप्त हो जाती है ? नहीं ,वह किसी सुरंग में भी बदल सकती है, बशर्ते आदमी को विभिन्न हालातों का सामना करना आ जाए। आदमी अपनी इच्छाओं को दर किनार कर खुद को एक सुरंग सरीखा बनाने में जुट जाए। वह घमंडी है। उसे जैसा है,वैसा बना रहने दो। तुम स्वयं में परिवर्तन लाओ। अपने घमंड को साइबेरिया के ठंडे रेगिस्तान में छोड़ आओ। खुद को विनम्र बनाओ। यूं ही खुद को अकड़े अकड़े , टंगे टंगे से न रखो। फिलहाल अपने घमंड को किसी बंद संदूक में कर दो दफन। जीवन में बचा रहे अमन। तरो ताज़ा रहे तन और मन। जीवन अपने गंतव्य तक स्वाभाविक गति से बढ़ता रहे। घमंड मन के भीतर दबा कुचला बना रहे , ताकि वह कभी तंग और परेशान न करे। उसका घमंड जरूर तोड़ो। मगर तुम कहीं खुद एक घमंडी न बन जाओ । इसलिए तुम इस जीवन में घमंड की दलदल में धंसने से खुद को बचाओ। घमंड को अपनी कथनी करनी से एक पाखंड अवश्य सिद्ध करते जाओ। ११/१२/२०२४.