Hello < Poetry
Classics
Words
Blog
F.A.Q.
About
Contact
Guidelines
© 2024 HePo
by
Eliot
Submit your work, meet writers and drop the ads.
Become a member
Joginder Singh
Poems
1d
गूंगा
इन दिनों
चुप हूं।
जुबान अपना कर्म
भूल गई है।
उसको
नानाविध व्यंजन खाने ,
और खाकर चटखारे लगाने की
लग गई है लत!
फलत:
बद से बद्तर
होती चली गई है हालत !!
इन दिनों
जुबान दिन रात
भूखी रहती है।
वह सोती है तो
भोजन के सपने देखती है ,
भजन को गई है भूल।
पता नहीं ,
कब चुभेगा उसे कोई शूल ?
कि वह लौटे, ढूंढ़ने अपना मूल।
इन दिनों
चुप हूं ।
चूंकि जुबान के हाथों
बिक चुका हूं ,
इसलिए
भीतर तक गूंगा हूं ।
०६/०३/२००८.
Written by
Joginder Singh
Follow
😀
😂
😍
😊
😌
🤯
🤓
💪
🤔
😕
😨
🤤
🙁
😢
😭
🤬
0
37
dead poet
Please
log in
to view and add comments on poems