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Dec 10
उसकी नज़र
लगी कि
जहर भूला ,
अपनी तासीर
ज़िंदगी ,
एक अमृत कलश सरीखी
आने लगती नज़र ।

काश ! उसकी नज़र
सबको आए नज़र
हर कोई चाहता की
भूलभुलैया में खो जाए !
ज़िंदगी एक सतरंगी पींघ पर
झूमने लग जाए !!

उसकी नज़र
चाहत की राहत सरीखी हो जाए ,
आदमी प्रेम धुन गुनगुनाते हुए
समाप्ति की ओर बढ़ता चला जाए ।
उसके चेहरे मोहरे पर
कुछ न करने का मलाल
कभी न आए नज़र ।

उसकी नज़र
इश्क मुश्क की
अनकही इबारत है
जिसकी नींव पर
हरेक निर्मित करना चाहता है ,
भव्यता की पायेदार इमारत ।
भले ही
ज़िंदगी कुछ न करने की
शिकायत करती आए नज़र ।

उसकी नज़र को
किसी की नज़र न लगे कभी भी
उसे महसूस न हो
जीवन में
कोई भी कमी कभी भी ।
उसकी नज़र का ज़हर
पी लेंगे सभी कभी भी ।
अपने भीतर के ज़हर को भूलकर,
तोड़ कर अपने समस्त
सिद्धांत और उसूल !
२२/१२/२०१६.
Written by
Joginder Singh
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