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Dec 9
आज
किस से
रखूं आस कि
भूख लगने पर
वह डालेगा घास
मेरे सम्मुख ही नहीं
समय आने पर
खुद के सम्मुख भी...?

सुना है --
सच्चाई छिपती नहीं !
ज़िंदगी डरती नहीं !!

वह सतत अस्तित्व में रहेगी
भले ही मोहरे जाएं बदल !
समय के महारथी तक जाएं पिट !
बेबसी के आलम में
वे हाथ मलते आएं नज़र !
वे पांव पटकते जाएं ग़र्क !!

आज
किस से
रखूं आस कि
प्यास लगने पर
रखेगा कोई मेरे सम्मुख पानी
मेरे आगे ही नहीं ,
खुद के आगे भी...?

देखा महसूसा है --
असंतुष्टि के दौर में
तृप्ति कभी मिलती नहीं ,
तृषा कभी मिटती नहीं ,
तृष्णा कभी संतुष्ट होगी नहीं !
आदमी
खुद को कभी तो
समझे ज़रूर
ताकि तोड़ सके
अपने दुश्मन का गुरूर
आदमी का दुश्मन कोई ग़ैर नहीं
खुद उसका हमसाया है ,
यह भी समय की माया है।
.........
क्यों कि
हम तुम
बने रहते ,  मनचले होकर  , गधे हैं !
जब तक कोई हम पर
चाबुक फटकारता नहीं ,
भला हम सब कभी सधे हैं !
क़दम क़दम पर जिद्दी बनकर
रहते अड़े  और खड़े हैं
कभी न बदलने की ज़िद्द का दंभ पाले हुए।

०२/०८/२००७.
Written by
Joginder Singh
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