Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Dec 2024
ज़ंग
तबाही का मंज़र
पेश करती है।
यह
कायर के भीतर
खौफ पैदा करती है।
यह
बहुतों को
मौत की नींद सुलाती है।
कभी कभी
ज़ंग
अमन के नाम पर
इंसाफ़ पसन्दों को
रुलाती है।

यह
जब लंबी  
खींच जाती है,
तब यह
बहुतों को
देती है जीवन से मुक्ति।

और
सब से ‌बढ़कर
ज़ंग हथियारों को जंग
नहीं लगने देती,
बेशक
दुनिया बदरंग होकर
लगने लगती है
एकदम से
गई बीती ।

आजकल
ज़ंगें क्यों ‌हो
रही हैं?
कभी
सोच विचार किया है ‌आपने ?
जब हथियार नहीं बिकते ,
तब हथियारों के
सौदागरों की
साज़िश के तहत
मतभेदों और मनभेदों को
बढ़ाया जाता है।
व्यक्तियों, लोगों ,देशों को
परस्पर लड़वाया जाता है।

ज़ंगों ,युद्धों , लड़ाइयों से
देश दुनिया में
विकास के पहियों को
रुकवा कर
विनाश के पथ पर बढ़ाया जाता है।

आओ हम सब यह संकल्प करें
कि जीवन में
ज़ंग से करेंगे गुरेज
ताकि दुनिया और ज़िन्दगी को
रखा जा सके सही सलामत।
ज़ंग कभी न बन सके
तबाही की अलामत।
१८/०१/२०१७.
Written by
Joginder Singh
32
 
Please log in to view and add comments on poems