जीवन में कुछ लोग बिना परिश्रम किए चर्चित रहना चाहते हैं । वे बगैर किए धरे सुर्ख़ियों में बने रहना चाहते हैं। भला ऐसा घटित होता है कभी।
उनकी चाहत को महसूस कर कभी कभी सोचता हूं कि आजकल भाड़े के टट्टू क्यों बनते जा रहे हैं निखट्टू ? ये दिहाड़ियां करते हुए कभी कभार अधिक दिहाड़ी मिलने पर झट से पाला बदल लेते हैं। अपने निखट्टूपन को एक अवसर में बदल जाते हैं। जिसका काम होता है प्रभावित , उसे भीतर तक चिड़चिड़ा बना देते हैं।
उन्हें जब कोई क्रोध में आकर भाड़े का टट्टू कहता है , तो उनमें बेहिसाब गुस्सा भर जाता है। वे तिलमिलाए हुए उत्पात करने पर उतारू हो जाते हैं। वे भाड़े के टट्टू नहीं बल्कि टैटू की तरह दिखाई देना चाहते हैं। सभी के बीच अपनी पैठ बनाना चाहते हैं । वे हमेशा चर्चाओं में बने रहना चाहते हैं। वे इसी चाहत के वशीभूत होकर जीवन भर भटकते रहते हैं। आखिरकार थक-हारकर शीशे की तरह चकनाचूर होते जाते हैं।