नफ़रत हसरत की जगह ले.......ले , भला यह कभी हो सकता है ? बगैर होंसले कोई जी सकता है !
अतः नफ़रत से बच ! यह झूठ को बढ़ावा दे रही है !! झूठे को बलवान बनाना चाहती है !!! .... और सच को करना चाहती है भस्म । नफ़रत मारधाड़, हिंसा को बढ़ावा देती है। यह मन की शांति छीन लेती है। यह अच्छे और सच्चे को भटकाती रहती है! यह सच में अच्छे भलों का जीवन कष्टप्रद बना देती है। दोस्त मेरे, तुम इसके भंवरजाल से जब तक बच सकता है, तब तक बच । यह मानव की सुख समृद्धि, संपन्नता और सौहार्द को नष्ट करने पर तुली हुई है। दुनिया इसकी वज़ह से दुःख, दर्द, तकलीफ़, कष्ट, हताशा , निराशा की दलदल में फंसी हुई है। इससे बच सकता है तो बच ताकि तुम्हारी सोच में बचा रहे सच , जो बना हुआ है हम सब के रक्षार्थ एक सुरक्षा कवच। १६/१२/२०१६.