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Dec 2024
वह इस भरेपूरे संसार में
अपनेपन के अहसास के बावजूद
निपट अकेला है ।
वह ढूंढ रहा है सुख
पर...
उससे लिपटते जा रहें हैं दुःख ,
जिन्हें वह अपना समझता है
वे भी मोड़ लेते हैं
उससे मुख ।

काश ! उसे मिल सके
प्यार की खुशबू
ताकि मिट सके
उसके भीतर व्यापी बदबू ।

वह इस भरेपूरे संसार में
निपट अकेला है ,
क्यों कि दुनिया के इस मेले को
समझता आया एक झमेला है
फलत:
अपने अनुभव को
अब तक
बांट नहीं पाया है
अपने गीत
अकेले गाता आया है।
कोई उसे समझ नहीं पाया है।
शायद वह
अभी तक
स्वयं को भी नहीं समझ पाया है!
बस अकेला रह कर ही
वह जीवन जी पाया है।
वह भटकता रहा है अब तक
कोई उसके भीतर झांक नहीं पाया है!
उसके हृदय द्वार पर दस्तक
नहीं दे पाया है !
उसने खुद को खूब भटकाया है।
अब तो उसे भटकाव भाने लगा है!
इस सब की बाबत सोचता हुआ
वह पल पल रीत रहा है।
हाय! यह जीवन बीत चला है।
  १६/१२/२०१६.
Written by
Joginder Singh
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