यदि बनना चाहते तुम , सिद्ध करना चाहते तुम पढ़ें लिखों की भीड़ में स्वयं को प्रबुद्ध तो रखिए याद सदैव यह सच , यह याद रखना बेहद जरूरी है कि अंत:करण बना रहे सदैव शुद्ध । अन्यथा व्यापा रहेगा भीतर तम , और तुम अंत:तृष्णाओं के मकड़जाल में फंसकर सिसकते, सिसकियां भरते रहे जाओगे । तुम्हारे भीतर समाया मानव निरंतर दानव बनता हुआ गुम होता चला जाएगा , वह कभी अपनी जड़ों को खोज नहीं पाएगा ।
वह लापता होने की हद तक खुद के टूटने की , पहचान के रूठने की प्रतीति होने की बेचैनी व जड़ता से पैदा होने के दंश झेलने तक सतत् एक पीड़ा को अपनाते हुए जीवन की आपाधापी में खोता चला जाएगा। वह कभी अपनी प्रबुद्धता को प्रकट नहीं कर पाएगा। फिर वह कैसे अपने से संतुष्ट रह पाएगा? अतः प्रबुद्ध होने के लिए अपने भीतर की यात्रा करने में सक्षम होना बेहद जरूरी है। यह कोई मज़बूरी नहीं है । ०३/१०/२०२४.