कभी-कभी चेतना कहती है वे हत्यारे रहे होंगे कभी फ़िलहाल रोटियां बांटते हैं, नौकरियां देते हैं, क्या यह सच नहीं ? फिर किस मुंह से उन्हें हत्यारा कहोगे ? उनके बगैर गुज़ारा कैसे करोगे ? कभी कभी चेतना कहती है , 'अच्छा रहेगा अपनी भूख दबा दो कहीं गहरे रसातल में...! फिर भले ही उन्हें भूला दो , जिन्हें तुम 'आया मालिक ' कहते हो! जिनके आगे पीछे घूम घूमकर अपनी दुम हर समय हिलाते रहे हो !! उनके सामने हर समय नाचते हो !! वे हत्यारे रहे होंगे कभी फ़िलहाल मालिक हैं पोतते रहते कालिख हैं मासूम चेहरों पर । उन्हें हर समय डांट लगा कर , उन्हें जबरन गुलाम बनाकर , उनके मन-मस्तिष्क में असंतोष जगाने का काम करते हैं । उन्हें विद्रोही बनाने पर तुले हैं।
भले ही वे उन्हें हर पल डांटते रहते हों अपनी बेहूदा आदतों की वज़ह से! वे भी तुम्हारी तरह भीतर तक शांत रहते हैं पर हर बार डांट डपट सहने के बावजूद हर पल हंसते मुस्कुराते रहते हैं ! अपनी आदतों की वज़ह से !! क्या तुम इसे समझते हो ? कहीं तुम भी तो उन मालिकों और नौकरों की तरह किसी तरह से भी कम नहीं , सताने और अत्याचार सहने को अपनी आदतों में शुमार करने के मामले में ! क्या तुम भी शामिल हो चालबाजी , हुल्लड़बाजी , शब्दों की बाजीगरी , चोरी सीनाज़ोरी के खेल में ? फिर तो कभी रात कटेगी जेल में! कभी-कभी चेतना हम सबको आगाह करती है पर किसी किसी को उसकी आवाज़ सुनाई देती है। ०६/०३/२०१८.