मुस्कराते चेहरे पर रह रह कर टिक जाती है नज़र पर चेहरे के 'चेहरे' पर जब सचमुच पड़ती नज़र, तब हक़ीक़तन उड़ती चेहरे की मुस्कान! खोने लगती पहचान !! मुख पर परेशानी की लकीरें दिखने लगतीं । खूबसूरती बदसूरती में बदलती है जाती । यह मन मस्तिष्क को बदस्तूर बेंधने लगती। पल प्रतिपल ऐसी मनोदशा में नींद में सेंध लगने लगती ! रातें बेचैनी भरी जाग कर कटतीं!! दिन में रह रह कर नींद आने लगती!!! काम करने की कुशलता भी है घटती जाती। २१/१२/२०१६.