यदि कोई बूढ़ा बच्चा बना सा पढ़ता मिले कभी तुम्हें कोई चित्र कथा ! तब तुम उसे बूढ़े बच्चे पर फब्तियां बिल्कुल न कसना । उसे अपने विगत के अनुभवों की कसौटी पर परखना। संभव है कि वह अपने अनुभव और अनुभूतियों को बच्चों को सौंपने के निमित्त रचना चाहता हो नवयुग की संवेदना को अपने भीतर सहेजे हुए कोई अनूठी परी कथा। बल्कि तुम उसकी हलचलों के भीतर से स्वयं को गुजारने की कोशिश करना । संभव है कि तुम उसे बूढ़े बच्चे से अभिप्रेरित होकर चलने लगो अपनी मित्र मंडली के संग सकारात्मकता से ओतप्रोत जीवन के पथ पर ।
यदि कोई बालक हाथ में पकड़े हुए हो अपने समस्त बालपन के साथ कोई वयस्कों वाली किताब ! तब तुम मत हो जाना शोक मग्न! मत रह जाना भौंचक्का !! कि तुम्हें उस मुद्रा में देखकर लगे उसे अबोध को धक्का !! संभव है- वह बूढ़े दादा तक घर के कोने में पटकी हुई एक तिरस्कृत संदूकची में युवा काल की स्मृति को ताज़ा करने वाली एक प्रतीक चिन्ह सरीखी निशानी को , धूल धूसरित कोई अनोखी किताब दिखाने ले जा रहा हो।
और... हो सकता है वे,दादा और पोता अपनी अपनी अपनी उम्र को भूलकर हो जाएं हंसते हुए खड़े और देकर एक दूसरे के हाथ में अपने हाथ चल पड़े साथ-साथ करने समय का स्वागत , जो सदैव हमारे साथ-साथ चल रहा है निरंतर , हमें नित्य ,नए अनुभव और अनुभूतियां देता हुआ सा , हमारे भीतर चुपचाप स्मृतियां बन कर समाता हुआ , हमें प्रौढ़ बनाता हुआ । हमें निरंतर समझदार बनाता हुआ।