ईश्वर : हाँ , बिल्कुल । मेरे यहाँ से व्यक्ति इस धरा पर समानता और स्वतंत्रता के अधिकार सहित आता है । मैं : फिर क्यों वह गैर बराबरी और शोषण का शिकार बन जाता है ? ईश्वर :...पर ज़माने की हवा खाकर कोई कोई व्यक्ति साधन सम्पन्न बनकर पूंजीवादी मानसिकता का बन जाता है। वह पहले पहल अपने हमसायों से ख़ूब मेहनत करवाता है। फिर उन्हें बेच खाता है, शोषण का शिकार बनाता है। मैं: आप इस बाबत क्या सोचते हैं ? ईश्वर : सोचना क्या ? आज का आदमी हर समय धन कमाने की सोच रखता है। वह उन्हें गुलाम बना कर रखता है । उनके कमज़ोर पड़ने पर वह उन्हें हड़प कर जाता है । तुम्हारा इस बारे में क्या सोचना है ? मैं : .......! ईश्वर : सच कहूं, बेटा! मेरा जी भर आता है और मुझे लगता है कि ईश्वर कहाँ?...वह तो मर चुका है । ईश्वर को तो आदमी के अहंकार ने मार दिया है। मैं: ......!! मैं ईश्वर के इस कथन के समर्थन में सिर हिला देता हूँ। पर कहता कुछ नहीं, उन्होंने मुझे निरुत्तर जो कर दिया है ।