देह से नेह है मुझे यह चाहे गाना अब देह का राग भीतर भर भर कर संवेदना करना चाहे यह संस्पर्श अनुभूतियों के समंदर का । हाल बताना चाहे मन के अंदर उठी लहरों का । यह सच है कि इससे नेह है मुझे पर मैं इसे स्वस्थ नहीं रख पाया हूँ। जिंदगी में भटकता आया हूँ।
जब यह अपनी पीड़ा नहीं सह पाती है तो बीमार हो जाती है , तब मेरे भीतर चिंता और उदासी भर जाती है।
इससे पहले कि यह लाइलाज़ और पूर्ण रूपेण से हो रुग्ण मुझे हर संभावित करना चाहिए इसे स्वस्थ रखने के प्रयास। पूरी तरह से इसके साथ रचाना चाहिए संवाद। इससे खुलकर करनी चाहिए बात। इसकी देह में भरना चाहिए आकर्षण। आलस्य त्याग कर नियमित रूप से करना चाहिए व्यायाम। ताकि यह अकाल मृत्यु से सके बच। यह खोज सके देहाकर्षण के आयाम। दे सके अशांत, आक्रांत, आत्म को भीतर तक , गहरे शांत करने के निमित्त दीर्घ चुम्बन! हों सकें समाप्त इसके भीतर की सुप्त इच्छाओं से निर्मित रह रह कर होने वाले कम्पन और निखर सके तनाव रहित होकर देह के भीतर के वासी का मन।
देह की राग गाने की इच्छा की पूर्ति भी हो जाए, इसके साथ साथ भीतर इसके उमंग तरंग भर जाए ।
आज ज़रूरी है यह तन और मन की जुगलबंदी से राग,ताल, लय के संग जीवन के राग गाए, ज़रा सा भी न झिझके अपना अंतर्मन खोल खोल भीतर इकठ्ठा हुआ सारा तनाव बहा दे । करे यह दिल से नर्तन! छूम छन छन...छिन्न...छन्ना छन ...छ।...न...!!
देह से नेह है मुझे पर...मैं... इसे मुक्त नहीं कर पाया हूँ । इससे मुक्त नहीं हो पाया हूँ। शायद देह का राग मुझ में भर दे विराग , जगा दे दिलोदिमाग को रोशन करता हुआ कोई चिराग़। और इस की रोशनी में देह अपने समस्त नेह के साथ गा सके देह का सम्मोहक तन और मन के भीतर से प्रतिध्वनित रागिनी के मनमोहक रंग ढंग से सज्जित मनोरम राग और जो मिटाए देह के समस्त विषाद । कर सके तन और मन से संवाद।