अवैध संबंध लत बनकर जीव को करते हैं अकाल मृत्यु के लिए बाध्य।
जीव इसे भली भांति जानता है , फिर भी वह खुद को इन संबंधों के मकड़जाल में उलझाता है। असमय यमदेव को करता है आमंत्रित।
मरने के बाद वह माटी होकर भी शेष जीवन तक , मुक्ति होने तक प्रेत योनि में जाकर अपनी आत्मा को भटकाता रहता है। वह नारकीय जीवन के लिए फिर से हो प्रस्तुत! जन्मने को हो उद्यत!
अवैध संबंध भले ही पहले पहल मन के अंदर भरें आकर्षण। पर अंततः इनसे आदमी मरें असमय, प्राकृतिक मौत से कहीं पहले अकाल मृत्यु का बनकर शिकार । क्यों न वे अपने भीतर समय रहते अपना बचाव करें।
आओ, हम अवैध संबंध की राह से बचने का करें प्रयास। ताकि हम उपहास के पात्र न बनें। बल्कि जीवन में सुख, शांति, संपन्नता की ओर बढ़ें। क्यों न करें हम अपना बचाव ? फिर कैसे नहीं जीवन नदिया के मध्य विचरते हुए , लहरों से जूझकर सकुशल पहुंचे, लक्ष्य और ठौर तक जीवन की नाव ? आओ, हम अपना बचाव करें । अनचाहे परिणामों और रोगों से खुद को बचा पाएं । संतुलित जीवन जी पाएं ।