क्योंकि जीवन धारा में मौत है एक ठहराव भर !! यहां पल प्रतिपल संशयात्मा अपने भीतर अंधेरा भर रही है ! जो खुद की परछाइयों से सतत् डर रही है !
अब आप ही बताइए कि कौन मर रहा है ? मौत का सौदागर या ज़िंदगी का जादूगर ?
आखिरकार ज़िंदगी मौत को मात दे ही देती है , क्योंकि जिंदगी के क्षण क्षण में जिजीविषा भरी है सो यह जीवन धारा के साथ बहकर आसपास फैली गन्दगी को भी बहाकर ले जाती है ।
ज़िंदगी जब कभी भी बिखेरती है मेरे सम्मुख अपने सम्मोहन के रंग ! रह जाता हूं , बाहर भीतर तक हैरान और दंग !!
ज़िंदगी परम प्रदत्त एक सम्मोहक चेतना है जो आदमी को खुदगर्ज़ी के दलदल से परे धकेलती है, और यह अविराम चिंतन से अपने नित्य नूतन आयामों से परिचित करवा कर हमारी चेतना को प्रखर करती है। १२/०६/२०१८.