सांझ का आगमन मन के आकाश में हो गया है। कुछ देर बाद रात भी आ जाएगी। जिंदगी आराम करने के लिए सो जाएगी। जब कभी भी शाम होती देखता हूं तो मुझे जिंदगी की शाम नज़दीक खड़ी होने का होता है अहसास।
पल दो पल के लिए मैं सिर्फ पछता और छटपटा जाता हूं।
रात होने से पहले संध्या दिन के अंत का संकेत देती सी जब यह उतरती है दिन की छाती पर , तब दिल में कुछ पीछे छूटने का होता है अहसास । एक हल्का सा दर्द दिल में उठता है।
मुझे संध्या के झुटपुटे में अपनी कब्र दिख पड़ती है, एक कसक भीतर से उठती है। अपनी ही सिसकारी की भीतर से प्रतिध्वनि सुन पड़ती है। जो न केवल मेरे भीतर डर भरती है , बल्कि यह अंत की आहट देती सी लगती है । १०/०३/२०११.