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Joginder Singh
Poems
Nov 30
दर्पण का दुःख
दर्पण
दर्प न जाने।
वह तो
समर्पण को
सर्वोपरि माने ।
जिस क्षण
दंभी की छवि
उस पर आने विराजे,
उस पल
वह दरक जाये ,
उसके भीतर से
आह निकलती जाये।
उसका दुःख
कोई विरला ही जान पाये।
२०/०८/२०२०.
Written by
Joginder Singh
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