समय की धुंध में धुंधला जाती हैं यादें ! विस्मृति में की गर्त में खो जाती हैं मुलाकातें !! रह रह कर स्मृति में गूंजती है खोए हुए संगी साथियों की बातें !!!
आजकल बढ़ती उम्र के दौर से गुज़र रहा हूं मैं, इससे पहले की कुछ अवांछित घटे , घर पहुंचना चाहता हूं। जीवन की पहली भोर में पहुंचकर अंतर्मंथन करना चाहता हूं ! जिंदगी की 'रील 'की पुनरावृत्ति चाहता हूं !
अब अक्सर कतराता हूं , चहल पहल और शोर से।
समय की धुंध में से गुज़र कर , आदमी वर लेता है अपनी मंज़िल आखिरकार ।
उसे होने लगता है जब तब , रह ,रह कर ,यह अहसास ! कि 'कुछ अनिष्ट की शंका है , जीवन में मृत्यु का बजता डंका है।' इससे पहले की ज़िंदगी में कुछ अवांछित घटे, सब जीवन संघर्ष में आकर जुटें।
यदि यकायक अंदर बाहर हलचल रुकी , तो समझो जीवन की होने वाली है समाप्ति । सबको हतप्रभ करता हुआ, समस्त स्वप्न ध्वस्त करता हुआ, समय की धुंधयाली चादर को झीनी करता हुआ , उड़ने को तत्पर है पंछी ।
इस सच को झेलता हूं, यादों की गठरी को सिर पर धरे हुए निज को सतत ठेलता हूं ! सुख दुःख को मेलता हूं !! जीवन के संग खेलता हूं!!!