वह आदमी जो अभी अभी तुम्हारी बगल से निकला है । एक आदमी भर नहीं, एक खुली किताब भी है।
दिमाग उसके में हर समय चलता रहता हिसाब-किताब है , वह ज़िंदगी की बारीकियां को जानने ,समझने के लिए रहा बेताब है, उस जैसा होना किसी का भी बन सकता ख़्वाब है, चाल ढाल, पहनने ओढ़ने, खाने पीने, रहने सहने, का अंदाज़ बना देता उसे नवाब है। वह सच में एक खुली किताब है।
तुम्हें आज उसे पढ़ना है, उससे लड़ना नहीं। वह कुछ भी कहे, कहता रहे, बस !उससे डरना नहीं । वह इंसान है , हैवान नहीं । उम्मीद है ,तुम उसे ,अच्छे से ,पढ़ोगे सही । न कि ढूंढते रहोगे, उस पूरी किताब के किरदार में , कोई कमी। जो तुम अक्सर करते आए हो और जिंदगी में खुली किताबों को पढ़ नहीं पाए हो। पढ़े लिखे होने के बावजूद अनपढ़ रह गए हो। बहुत से अजाब सह रहे हो।