तकलीफें जब सभी हदें लांघकर आदमी को हताश और निराश कर देती हैं, तब आदमी बन जाता है पत्थर। उसकी आंख के आंसू सूख जाते हैं। ऐसे में आदमी हो जाता है पत्थर दिल।
तकलीफें उतनी ही दीजिए जिसे आपका प्रिय जन खुशी खुशी सह सके । अपनी ज़िन्दगी को ढंग से जी सके।
कहीं तकलीफ़ का आधिक्य चेतना को न कर दे पत्थर और बाहर से आदमी ज़िंदा दिखे पर भीतर से जाए मर ।