Submit your work, meet writers and drop the ads. Become a member
Nov 2024
सरे राह
जब कभी भी
किसी की इज़्ज़त
नीलाम होने को होती है ,
तो उसकी देह और घर की देहरी से
निकलती हैं आहें कराहें ।

इसे
शायद ही कोई
सुन पाता है !
इज़्ज़त की नीलामी को
रोक पाता है !!


दोस्त ,
अपने कुकर्मों से
निजात पा ,
सत्कर्मों की राह पर
ख़ुद को लेकर जा
ताकि
अपना घर
नीलाम होने से सके बच
और
जीवन की खुशियों को
कोई
सके न डस ।

दोस्त!
सुन संभल जा ,
खुद और अस्मिता को
नीलाम होने से बचा।  

२१/०२/२०१४.
Written by
Joginder Singh
30
   dead poet
Please log in to view and add comments on poems