शुक्र है हम सबके सिर पर संविधान की छतरी है। हमें विरासत में मिली गणतंत्र की गरिमा है। अन्यथा देखिए और समझिए। इस देश में आदमी की अस्मिता टोपी धारी के इशारे पर कब-कब नहीं बिखरी है ?
शुक्र है हम सबके अस्तित्व पर तानी गई संविधान की छतरी है , वरना अधिकार के नाम पर बहुत बार नकटों ने अपने लटके-झटकों से आदमी की नाक कतरी है ।
शुक्र है इस बार भी नाक बची रह गई , संविधान की कृपा से देश की अस्मिता इस वर्ष भी बची रह गई ।
मैं संकल्प करता हूं कि इस गणतंत्र दिवस से अगले गणतंत्र दिवस तक, यही नहीं स्वतंत्रता दिवस से अगले साल स्वतंत्रता दिवस पर, हर बार देश और जनता से किया गया वायदा दोहराता रहूंगा, अपने आप को यह याद दिलाता रहूंगा कि देश तभी बचा रहेगा, जब सभी नागरिक कर्मठ बनेंगे।
मैं अपने साथियों के साथ देशभर के नागरिकों को संविधान का अध्ययन करने और उन और उसके अनुसार अपना जीवन यापन करने के लिए पुरज़ोर अपील करता रहूंगा। समय-समय पर उनमें साहस भरता रहूंगा। स्वयं को और अपनी मित्र मंडली को विचार संपन्न बनाता रहूंगा।
देश विदेश में घटित हलचलों को संवैधानिक दृष्टि से पढ़ते हुए अपने चिंतन का विषय बनाऊंगा। हर एक संकट के दौर में खुद को संविधान की छतरी के नीचे बैठा पाऊंगा।
मैं संविधान को गीता सदृश पढ़ता रहूंगा, देशकाल ,हालात अनुसार संविधान की समीक्षा मैं करता रहूंगा , मां-बाप और समाज की नज़रों में शर्मिंदा होने से बचता रहूंगा ।
मैं हमेशा संविधान की छतरी तले रहूंगा। हर वर्ष 26 जनवरी को संविधान निर्माताओं की देन को याद करूंगा । संवैधानिक मूल्यों का पालन कर आगे बढूंगा।