अच्छी सोच का मालिक कभी-कभी अभद्र भाषा का करता है प्रयोग , तो इसकी ख़िलाफत की खातिर , आसपास , जहां , तहां, वहां , चारों तरफ़ , कहां-कहां नहीं मचता शोर । सच कहूं, लोग इस शोर को सुनकर नहीं होते बोर । आज की ज़िंदगी में यह संकट है घनघोर । जनाब ,इस समस्या की बाबत कीजिए विचार विमर्श।
ताकि अच्छी सोच का मालिक जीवन भर अच्छा ही बना रहे । वह जीवन की खुशहाली में योगदान देता रहे । यदि आप ऐसा ही चाहते हैं ,जनाब ! तो कभी भूले से भी उसे न दीजिए कभी गालियां। उसे अपशब्दों, फब्तियों,तानों, लानत मलामत से कभी भी न नवाजें। उसे न करें कभी परेशान। उसके दिलों दिमाग को ठेस पहुंचाना, उसकी अस्मिता पर प्रश्नचिह्न अंकित करना। उस पर इल्ज़ाम लगा कर बेवजह शर्मिंदा करना, जैसे मन को ठेस लगाने वाले अनचाहे उपहार न दीजिए । कभी-कभी उसे भी अपना लाड़ ,दुलार ,प्यार दीजिए ।