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Joginder Singh
Poems
Nov 2024
उम्मीद बनी रहे
आदमी के भीतर
उम्मीद बनी रहे मतवातर ,
तो आदमजात करती नहीं
कोई शिकवा, गिला ,शिकायत ।
अगर
कभी भूल से
जिंदगी करने लगे ,
ज़रूरत के वक्त
बहस मुबाहिसा
तो भी भीतर तक
आदमी रहता है शांत ,
वह बना रहता धीर प्रशांत ।
वह कोई बलवा
नहीं करता।
उम्मीद उसे
ज़िंदादिल बनाए रखती है,
'कुछ अच्छा होगा। ',
यह आस
उसे कर्मठ बनाए रखती है ।
जीवन की गति को बनाए रखती है ।
३०/११/२०२४.
Written by
Joginder Singh
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