आप अक्सर जब निस्वार्थ भाव से, अपने प्रियजनों का पूछते हैं कुशल क्षेम, तब आप के भीतर विद्यमान रहता है प्रेम का सच्चा स्वरूप ।
उसे दिव्यता से जोड़ने पर मन मन्दिर में उभरता है भक्ति की अनुभूति का सम्मोहक स्वरूप।
और यही भाव लौकिकता से जुड़ने पर ले लेता है अपना रंग रूप स्वरूप कुछ अनोखे अंदाज में जो होता है प्रायः आकर्षण से भरपूर। यहीं से सांसारिक सुख समृद्धि , लाड़, प्यार, मनुहार जैसी भाव सम्पदा से सज्जित जीवनाधार की शुरुआत होती है, जहां जीवन हृदय में कोमल भावनाओं के प्रस्फुटन के रूप में पोषित, पल्लवित, पुष्पित, प्रफुल्लित होता है।
ऐसी मनोदशा में प्रेम की शुद्धता और शुचिता का आभास होता है। यहां 'प्रेम गली अति सांकरी' रहती है। और जब इस शुचिता में सेंध लग जाती है, तब यह प्रेम और प्यार का आधार विशुद्ध वासना और हवस में बदल जाता है। स्त्री पुरुष का अनुपम जोड़ा भटकता नज़र आता है। इसके साथ साथ यह अन्यों को भी भटकाता है। प्रेम, प्यार,लगाव के अंतकाल का , शीघ्रता से , घर, परिवार,देश, समाज और दुनिया जहान में , आगमन होता है,साथ ही नैतिकता का पतन हो जाता है। ३०/११/२०२४.