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Nov 2024
तुम
शब्द साधना करो जरूर
शब्द
जब अनमने मन से
मुखारविंद से  निकलें,
तब लगने लगें
वे अपशब्द ।
कैसे करें वे
मन के भावों को
सटीकता से व्यक्त ।
आदमी अपनी संवेदना को अब कैसे बचाए?
वह भटकता हुआ, थका हारा, हताश नज़र आए।

शब्द
आदमी की अस्मिता को
अभिव्यक्त कर पाएं!
काश !
वे अपना जादू
चेतना पर कर जाएं!!
इसलिए
आदमी
शब्द की संप्रेषणीयता  के लिए
कभी तो ढूंढे
अपनी मानसिकता के अनुरूप
कोई नया उपाय।
यह बहुत जरूरी है कि
अब आदमी अपने मन  की बात
सहजता से कह पाए।
वरना चिंता और तनाव
मन के भीतर पैदा होते जायें।

सच के लिए
आज क्यों न सब
शब्द साधना को साधकर
अपने जीवन की राह चुनें।

अपनी बात कहते हुए
हम करें अपने शब्दों का सावधानी से चयन
कि ये न लगें अपशब्द।
ये मन की हरेक उमंग तरंग को
करें सहजता से अभिव्यक्त ।
मानव के भीतर रहते
झूठ को भी बेपर्दा करें ,
और करें सच को उद्घाटित,
ताकि जीवन में शब्द साधक
सच की उदात्तता को
अनुभूति का अंश बनाकर
आगे बढ़ सकें ।

सभी शब्द साधना करें जरूर
परंतु अपने अहंकार को छोड़कर ,
ताकि शब्दों पर अवलंबित
मानव इसी जीवन धारा में
जीवन के सच से रचा सके अपने संवाद।
भूल सके भीतर का समस्त विस्माद,वाद विवाद।
मिल सके जीवन को एक नया मोड़,
और मानव आगे बढ़े
निज के भीतर व्यापे अवगुण छोड़।


आदमी शब्द साधना जरूर करें
ताकि वह रोजमर्रा के अनुभवों को
जीवन की सघन अनुभूति में बदल सके।
वह अपने बिखराव को समेट
निज को उर्जित कर सके !
जीवन पथ पर निष्कंटक बढ़ सके !!

अतः ज़रूरी है मानव के लिए
जैसे-जैसे वह जीवन यात्रा में आगे बढ़ता जाए ।
धीरे-धीरे अपनी समस्त  कमियों को छोड़ता जाए ।
वह अपने जीवन में खूबियां को भरता जाए ।
अपनी लक्ष्य सिद्धि के लिए
शब्दों के संगीत से जुड़ता जाए।


दोस्त,
समय को समझने हेतु,
अपनी को बना लो एक सेतु
शब्दों और अर्थों में संतुलन बनाकर
शब्द साधना करते हुए
अभिव्यक्ति की खातिर
उजास को ढूंढों।


यदि व्यक्ति ने
खुद को जानना और पहचानना है
तो वह अपना जीवन
शब्द साधना को  करें समर्पित।

शब्द साधना करो जरूर !
इससे मिटता मन का गुरूर!!

आज
मानव के भीतर रहते
चंचल मन ने
मनुष्यों को ख़ूब भटकाया है ,
उसे लावारिस   बनाया है ,
उसे अनमनेपन के गड्ढों में ले जा डूबोया है।
उसके भीतर का साथी रहा शब्द,
आजकल गहरी नींद जा सोया है।

आज
मनुज को
इस गहरी नींद से
जगाना ज़रूरी है ।

शब्द साधना करके
मानव की
इस गहरी नींद को
तोड़ना अपरिहार्य है,
क्या यह सच तुम्हें
स्वीकार्य है ?
अतः शब्द साधना करना अपरिहार्य है।
जीवन की सार्थकता के लिए
यह निहायत जरूरी है ।
२१/०२/२०१७.
Written by
Joginder Singh
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