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Nov 2024
यह सच है कि
समय की घड़ी की
टिक टिक टिक के साथ,
वह कभी न चल सका ,
बीच रास्ते हांफने लगा ।
एक सच यह भी है
कि अपनी सफलता को लेकर
सदैव रहा आशंकित और डरा हुआ,
लगता रहा है उसे,
अब घर ,परिवार ,
समाज में
केवल
बचा रह गया है छल कपट ।
दिल और दिमाग में
छाया हुआ है डर ,
जो अंधेरे में रहकर,
मतवातर हो रहा है सघन ।
एक भयभीत करने वाली धुंध
पल प्रति पल कर रही भीतर घर,
बाहर भीतर सब कुछ अस्पष्ट !
वह हरदम है भटकने को विवश!!
फलत: वह है पग पग पर है
हैरान और परेशान !


सोचता हूं कि  
क्या वह
घर से बेघर होकर ,
एक ख़ानाबदोश बना हुआ ,
भटकता  रहेगा जीवन भर ?
क्या यही उसके जीवन का सच है?
क्या कोई बन पाएगा
उसका मुक्ति पथ का साथी ?
जिसे खोजते खोजते सारी उम्र खपा दी !०६/०१/२००९.
Written by
Joginder Singh
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