यह सच है कि समय की घड़ी की टिक टिक टिक के साथ, वह कभी न चल सका , बीच रास्ते हांफने लगा । एक सच यह भी है कि अपनी सफलता को लेकर सदैव रहा आशंकित और डरा हुआ, लगता रहा है उसे, अब घर ,परिवार , समाज में केवल बचा रह गया है छल कपट । दिल और दिमाग में छाया हुआ है डर , जो अंधेरे में रहकर, मतवातर हो रहा है सघन । एक भयभीत करने वाली धुंध पल प्रति पल कर रही भीतर घर, बाहर भीतर सब कुछ अस्पष्ट ! वह हरदम है भटकने को विवश!! फलत: वह है पग पग पर है हैरान और परेशान !
सोचता हूं कि क्या वह घर से बेघर होकर , एक ख़ानाबदोश बना हुआ , भटकता रहेगा जीवन भर ? क्या यही उसके जीवन का सच है? क्या कोई बन पाएगा उसका मुक्ति पथ का साथी ? जिसे खोजते खोजते सारी उम्र खपा दी !०६/०१/२००९.