महंगाई ने न केवल किया है, जनसाधारण को भीतर तक परेशान , बल्कि इसने पहुंचाया है आर्थिकता को भारी-भरकम नुक्सान ।
दिन पर दिन बढ़ती महंगाई , ऊपर से घटती कमाई , मन के अंदर भर रही आक्रोश , इस सब की बाबत सोच विचार करने के बाद आया याद , हमारी सरकार जन कल्याण के कार्यक्रम चलाती है, इसकी खातिर बड़े बड़े ऋण भी जुटाती है। इस ऋण का ब्याज भी चुकाती है। ऊपर से हर साल लोक लुभावन योजनाएं जारी रखते हुए घाटे का बजट भी पेश करती है।
यही नहीं शासन-प्रशासन के खर्चे भी बढ़ते जा रहे हैं । भ्रष्टाचार का दैत्य भी अब सब की जेबें फटाफट ,सटासट काट रहा है।
चुनाव का बढ़ता खर्च आर्थिकता को तीखी मिर्च पाउडर सा रहा है चुभ।
यही नहीं बढ़ता व्यापार घाटा , आर्थिकता के मोर्चे पर पैदा कर रहा है व्यक्ति और देश समाज में सन्नाटा।
ऊपर से तुर्रा यह कर्ज़ा लेकर ऐश कर लो। कल का कुछ पता नहीं। व्यक्ति और सरकार आमदनी से ज़्यादा खर्च करते हैं, भला ऐसे क्या खज़ाने भरते हैं?
फिर कैसे मंहगाई घटेगी? यह तो एक आर्थिक दुष्चक्र की वज़ह बनेगी। जनता जनार्दन कैसे मंहगाई के दुष्चक्र से बचेगी ? देखना , शीघ्र ही इसके चलते देश दुनिया में अराजकता और अशांति बढ़ेगी। व्यक्ति और व्यक्ति के भीतर असंतोष की आग जलेगी।