आज सड़क पर
जीवन के रंग मंच पर
जिंदाबाद मुर्दाबाद की नारेबाजी
सुनकर लगता है,
अब कर रही है
जांबाज़ों की फ़ौज ,
अपने ही देश के
ठगों, डाकुओं, लुटेरों के ख़िलाफ़ ,
अपनी आखिरी जंग
लड़ने की तैयारी।
पर
मन में एक आशंका है,
भीतर तक
डर लगता है ,
कहीं सत्ता के बाजीगरों
और देश के गद्दारों का
आपस में न हो जाए गठजोड़ ।
और और देश में होने लगे
व्यापक स्तर पर तोड़-फोड़।
कहीं चोर रास्ते से हुई उठा पटक
कर न दे विफल ,
हकों की खातिर होने वाली
जन संघर्षों और जन क्रान्ति को।
कहीं
सुनने न पड़ें
ये शब्द कि...,
' जांबाज़ों ने जीती बाज़ी,
आंतरिक कलह ,
क्लेश की वज़ह से
आखिरी पड़ाव में
पहुंच कर हारी।'
देश मेरे , यह कैसी लाचारी है?
जनता ने आज
जीती बाजी हारी है ।
इस जनतंत्र में बेशक जनता कभी-कभी
जनता जनार्दन कहलाती है, ... लोकतंत्र की रीढ़ !
पर आज जनता 'अलोक तंत्र' का होकर शिकार ,
रही है अपनी अपनी जिंदगी को किसी तरह से घसीट।
अब जनता दे रही है दिखाई, एकदम निरीह और असहाय।
महानगर की सड़कों पर भटकती,
लूट खसोट , बलात्कार, अन्याय से पीड़ित ,
एक पगली सी होकर , शोषण का शिकार।
देश उठो, अपना विरोध दर्ज करो ।
समय रहते अपने फ़र्ज़ पूरे करो।
ना कि निष्क्रिय रहकर, एक मर्ज सरीखे दिखो।
अपने ही घर में निर्वासित जिंदगी बिता रहे
अपने नागरिकों के भीतर
नई उमंग तरंग, उत्साह, जोश , जिजीविषा भरो।
उन्हें संघर्षों और क्रांति पथ पर
आगे बढ़ने हेतु तैयार करो।
२६/११/२००८.