झुकी कंधों वाले आदमी से आप न्याय की अपेक्षा रखते हैं, सोचते हैं कि वह कभी लड़ेगा न्याय की खातिर , वह बनेगा नहीं कभी शातिर । आप गलत सोचते हैं , अपने को क्यों नोचते हैं ? कहीं वह शख़्स आप तो नहीं ? श्रीमान जी, आप अच्छी तरह जान लें , जीवन सत्य को पहचान लें ।
दुनिया का बोझ झुके कंधों वाला आदमी कभी उठा सकता नहीं, वह जीवन की राह को कभी आसान बना सकता नहीं । अतः बेशक आप झुके कंधे वाले आदमी को ज़रूर ऊपर उठाइए , आप आदमी होने जैसी मुद्रा को तोअपनाइए ।
फिर कैसे नहीं आदमी अन्याय और शोषण के दुष्चक्र को रोक पाएगा ?
वह कैसे नहीं झुके कंधे वाले आदमी की व्यथा को जड़ से मिटा पाएगा ? बस आदमी के अंदर हौंसला होना चाहिए । परंतु झुके कंधों वाले आदमी को कभी हिम्मत और हौंसला नसीब होते नहीं । वे तो अर्जित करने पड़ते हैं जीवन में लड़कर , निरंतर संघर्ष जारी रख कर , अपने भीतर जोश बनाए रखकर लगातार विपदाओं से जूझ कर , न कि जीवन की कठिनाइयों से भाग कर , इसलिए आगे बढ़ाने की खातिर सुख सुविधाओं को त्याग कर कष्टों और पीड़ाओं को सहने के लिए आदमी खुद को भीतरी ही भीतर तैयार करें , ताकि झुके कंधों वाला आदमी होने से न केवल खुद को बचा सके , बल्कि जीवन में कामयाबी को भी अपना सके।
अतः इस समय तुम जीवन को सुख , समृद्धि , संपन्नता, सौहार्दपूर्ण बनाने की सोचो , न कि जीवन को प्रलोभन की आग से जलाओ। इसके लिए तुम निरंतर प्रयास करो, अपने भीतर चेतना का बोध जगाओ।
यदि आप कभी झुके कंधों वाले आदमी को ग़ौर से देखें तो वह यकीनन आपके भीतर सौंदर्य बोध नहीं जगा पाएगा , बल्कि वह आपके भीतर दुःख और करूणा का अहसास कराएगा ।
झुके कंधों वाले आदमी को देखकर बेशक भीतर कुछ वितृष्णा और खीझ पैदा होती है। यही नहीं ऐसा आदमी कई बार उलझा पुलझा सा आता है नज़र, इसे देख जाने अनजाने लग जाती है नज़र अपनी उसको , और उसकी किसी दूसरे को।
सच तो यह है कि झुके कंधों वाला आदमी कभी भी दुनिया को पसंद नहीं आता । कोई भी उससे जुड़ना नहीं चाहता। भले ही वह कितना ही काबिल हो।
पता नहीं हम कब जीवन को देखने का अपना नज़रिया बदलेंगे ? यदि ऐसा हो जाए तो झुके कंधों वाला आदमी भी सुख-चैन को प्राप्त कर पाए। वरना वह जीवन भर भटकता ही जाए। २१/११/२००८.