अचानक एक दिन जब मैं था अधिक परेशान समय ने कहा था मुझे कुछ तू बना ना रहे और अधिक समय तक तुच्छ इसीलिए तुम्हें बताना चाहता कुछ जीवन से निस्सृत हुए सच । उस समय समय ने कहा था मुझे, " यूं ही ना खड़ा रह देर तक ,एक जगह । तुम चलोगे मेरे साथ तो यकीनन बनोगे अकलमंद । यूं ही एक जगह रुके रहे तो बनोगे तुम अकल बंद । फिर तुम कैसे आगे बढ़ोगे? सपनों को कैसे पूरा करोगे ?
मेरे साथ-साथ चल , अपने को भीतर तक बदल। मेरे साथ चलते हुए ,मतवातर आगे बढ़ते हुए, बेशक तुम जाओ थक , चलते जाओगे लगातार, तो कैसे नहीं , परिवर्तन की धारा से जा जुड़ोगे ?अफसोसजनक अहसासों से फिर न कभी डरोगे ।"
समय ने अचानक संवाद रचाकर खोल दिया था अपना रहस्य ,मेरे सम्मुख। आदमी के ख़्यालात को , अपने भीतर का हिस्सा बनाते हुए अचानक मेरी आंखें दीं थीं खोल। अनायास अस्तित्व को बना दिया अनमोल। और दिया था अपने भीतर व्याप्त समन्दर में से मोती निकाल तोल । यह सब हुआ था कि अकस्मात मुझे सच और झूठ की अहमियत का हुआ अहसास, खुद को मैंने हल्का महसूस किया। अब मैं खुश था कि चलो ,समय से बतियाने का मौका तो मिला।